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बस्तर में पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां

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Published On

Dec 13, 2024

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बस्तर में पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां

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एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के एक तथ्यान्वेषी दल की रिपोर्ट

छत्तीसगढ़ राज्य का बस्तर मंडल काफी तेजी से संघर्षों के क्षेत्र में बदलता जा रहा है। यहां सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच लगातार जंग जारी है। इन दोनों के बीच पत्रकार फंसे हुए हैं और उन पर सरकारी व गैर-सरकारी दोनों ही ताकतों का हमला हो रहा है। 

पिछले कुछ महीनों के दौरान पत्रकारों पर हमले की कई घटनाएं खबरों में आई हैं। खबरों के अनुसार कम से कम दो ऐसे पत्रकार हैं जिन्हें गिरफ्तार किया गया और जेल में डाला गया है और अन्य ऐसे पत्रकार हैं जिन्हें इस कदर धमकाया गया कि उन्हें अपनी जान बचाने के लिए बस्तर छोड़कर बाहर जाना पड़ा। सूचना के अनुसार कम से कम एक पत्रकार के आवास पर भी हमला हुआ है। 

इन खबरों की पड़ताल करने के लिए एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने तीन सदस्यों की एक तथ्यान्वेषी टीम का गठन किया। चूंकि सीमा चिश्ती यात्रा करने में असमर्थ थीं, इसलिए प्रकाश दुबे और विनोद वर्मा ने 13, 14 और 15 मार्च, 2016 को रायपुर/जगदलपुर का दौरा किया। 

तथ्यान्वेषी कमेटी के सदस्यों ने जगदलपुर में कई पत्रकारों और सरकारी अफसरों से मुलाकात की। रायपुर में इस टीम ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और राज्य के सभी शीर्ष अधिकारियों समेत कई संपादकों और कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से मुलाकात की। 

टीम ने पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम और आलोक पुतुल के बयानात दर्ज किए। टीम ने केंद्रीय कारागार का दौरा कर के वहां बंद पत्रकार संतोष यादव से भी मुलाकात की। 

तथ्यान्वेषी दल इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि पत्रकारों को खतरे संबंधी मीडिया में आई खबरें सच हैं। छत्तीसगढ़ में मीडिया जबरदस्त दबाव में काम कर रहा है। जगदलपुर और सुदूर आदिवासी अंचलों में पत्रकारों को खबरें जुटाने और प्रसारित करने में काफी दिक्कतें आ रही हैं। पत्रकारों पर जिला प्रशासन, खासकर पुलिस का दबाव है कि उनके मुताबिक खबर लिखें और ऐसी खबरें न छापें जिसे प्रशासन अपने खिलाफ मानता है। इलाके में काम कर रहे पत्रकारों पर माओवादियों का भी दबाव है। मोटे तौर पर यह धारणा है कि प्रत्येक पत्रकार पर सरकार निगरानी रखे हुए है और उनकी सभी गतिविधियों की जासूसी की जा रही है। वे फोन पर कुछ भी बात करने से हिचकिचाते हैं क्योंकि उन्हीं के मुताबिक ‘‘पुलिस हमारा एक-एक शब्द सुनती है।’’ 

कई वरिष्ठ पत्रकारों ने इस बात की पुष्टि की है कि एक विवादास्पद नागरिक समूह सामाजिक एकता मंच बस्तर में पुलिस मुख्यालय द्वारा वित्तपोषित और संचालित किया जाता है। उनके मुताबिक यह समूह सलवा जुड़ुम का ही एक अवतार है। 

Highlights

  1. 1.

    छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में तथ्यान्वेषी टीम (एफएफटी) को ऐसा एक भी पत्रकार नहीं मिला जो दृढ़ विश्वास से यह दावा कर सके कि वह डर या दबाव के बिना काम कर रहा/रही है।

  2. 2.

    एफएफटी को विभिन्न पत्रकारों ने बताया कि लड़ाई वाले क्षेत्र में जाने की उनकी हिम्मत नहीं है, क्योंकि वे वहां से तथ्यों की रिपोर्टिंग नहीं कर सकते।

  3. 3.

    बस्तर और रायपुर के संवाददाताओं को इस बात का डर था कि उनके फोन टैप किये जा रहे हैं, या फिर उन्हें सर्विलांस पर रखा जा रहा है, लेकिन रायपुर के अधिकारियों ने एफएफटी के साथ हुई बैठक में इस “अनुभूति” को खारिज कर दिया।

  4. 4.

    एफएफटी ने बस्तर में काम करने वाले पत्रकारों को चार बड़े समूहों में श्रेणीबद्ध किया हैः पेशे से पत्रकार; अंशकालिक पत्रकार; स्ट्रिंगर्स और न्यूज एजेंट्स; तथा अतिथि संवाददाता। टीम ने पाया कि अधिकतर पत्रकार दूसरी और तीसरी श्रेणी से है। इसका मतलब यह है कि उनका समाचार संस्थानों से कोई औपचारिक अनुबंध नहीं है, कोई सुरक्षा नहीं है तथा मीडिया के संपादकों से बहुत कम या बिल्कुल भी समर्थन नहीं है।

  5. 5.

    जिला मुख्यालयों से बाहर काम करने वाले पत्रकारों के प्रत्यायन की कोई क्रियावली नहीं है। इसलिए जब पहचान का सवाल उठता है, तो सरकार सीधे इस बात से इंकार कर देती है कि कोई पत्रकार है या था। मीडिया घराने भी कई बार दायित्व से बचने के लिए इन पत्रकारों को अपनाने से मना कर सकते हैं।

  6. 6.

    बस्तर में टीम जिन पत्रकारों से मिली, उनमें से कुछ ही स्थानीय आदिवासी भाषाएं बोल सकते थे।

  7. 7.

    एफएफटी की मुलाकात सुब्बा राव से हुई, जो विवादास्पद ‘सामाजिक एकता मंच’ के संयोजक हैं, जिसे नागरिक ‘सल्वाजुडूम’ का एक प्रकार समझा जाता है। राव दंतेवाड़ा में अविदित दैनिकों के संपादक हैं, लेकिन सरकारी तथा निजी सेक्टर दोनों की ही परियोजनाओं के प्रसिद्ध ठेकेदार हैं।

  8. 8.

    प्रख्यात पत्रकार तथा हिंदी दैनिक, ‘देशबंधु’ के संपादक ललित सुर्जन ने एफएफटी को बतायाः “यदि आप स्वतंत्रतापूर्वक किसी भी चीज का विश्लेशण करना चाहते हैं तब आपका यह आकलन किया जा सकता है कि आप सरकार के साथ हैं या माओवादियों के साथ। पत्रकारिता के लिए लोकतांत्रिक स्थान सिकुड़ता जा रहा है।

The Scheduled Castes and Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989

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Farmers’ Suicides in India: Magnitudes, Trends, and Spatial Patterns, 1997–2012

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The Farmers’ Right to Guaranteed Remunerative Minimum Support Prices for Agricultural Commodities Bill, 2018

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Mansarovar – 2

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The Indian Nation in 1942

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Serving Farmers and Saving Farming – First Report

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National Workshop on Migration and Global Environmental Change in India

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National Workshop on Internal Migration and Human Development in India Vol. 2 - Workshop Papers

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Serving Farmers and Saving Farming: From Crisis to Confidence – Second Report

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Key Indicators of Household Social Consumption on Education in India: NSS 75th Round (July 2017-June 2018)

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State of Working India 2019

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India Inequality Report 2018: Widening Gaps

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National Family Health Survey (NFHS-4) 2015-16: Goa

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National Family Health Survey (NFHS-4) 2015-16: Punjab

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Draft National Education Policy 2019

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Civil Society, Indian Elections and Democracy Today

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Pathetic Condition of the Sharecroppers: A Micro-Analysis

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Climate Change and Land: An IPCC special report on climate change, desertification, land degradation, sustainable land management, food security, and greenhouse gas fluxes in terrestrial ecosystems

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People’s Forests: Is Community Governance the Future of India’s Jungles?

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Annual Status of Education Report (Rural) 2021

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India Justice Report 2020

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Costs of climate inaction: displacement and distress migration

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Dr. Babasaheb Ambedkar (Vol. 12): Notes on Law, Autobiography, and Miscellaneous Writings

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A Statistical Analysis of Child Marriage in India: Based on Census 2011

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